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Showing posts from November, 2017

तुम मेरी स्याही ।

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पन्नों में लिखते लिखते तुझे थक गया हूँ, स्याही भी खतम और पन्ना भी खतम हो  गया है, फिर भी कितना जज्बाती  है मोहब्बत, मेरे  खुदा,  कि उसकी मीठी याद की स्याही कम्ब्खत खत्म ही नहीं होती।    

some sweet feeling

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आज कई अरसों बाद फिर उसकी याद आयी, बेचैनी , बेसब्री  बिन बुलाये फिर दावत पर आयी, पर शमा आज भी वही जो कभी हुआ करती थी, आंसूं तो  नजर आये पर पोछने वाली  नजर नहीं  आयी।  

मेरी मोहब्बत ।

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तुम मेरी साँसों में आकर सांस बन गयी, मेरे जीवन की तुम हर एक कहानी बन गयी,  मेरी जान इस कदर  तुमसे मोहब्बत हो गयी,  कि मोहब्बत ही हमारे जीवन की राह बन गयी । 

REAL LOVE SITUATION

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मोहब्बत का क्या पैगाम सुनाऊँ दोस्तों। न तो उससे मिला ,और न ही उसका प्यार पाया।। फिर भी जब जब उसका दीदार हुआ।  तब तब अपनी इन आँखों को  गिला ही पाया ।।

तुम मतलब तुम ।

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यारों दिल के  पिजड़ों  में मोहब्बत को बाँध लिया करो । जीवनसंगिनी कब छोड़ जाएँ इनका भरोसा ना किया करो ।। पास हैं तो इनसे बेइंतहां  खूब प्यार किया करो।  और छोड़ जाएँ तो दिल का  पिजड़ा खोल के  प्यार किया करो ।।

pollution at extreme level

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हे इंसान ! तु इतना प्रदूषण मत बढ़ा, कि कल पंक्षी भी  बेघर  हो जायें अपने घर से ।   तु तो रह लेगा अपनी  इन चार  दिवारी  में, पर छिन जायेगा पंक्षी का  बसेरा  अपने बसेरे से ।   हे इंसान ! तु दुनिया घूम  लेगा अपनी  बंद  गाड़ी से, पर पंक्षी का विचरण ना  हो पायेगा  इस  खुले  गगन से ।   हे इंसान ! तु इतना प्रदूषण  मत बढ़ा, कि कल पंक्षी भी  बेघर  हो जायें अपने घर से ।   क्या बिगाड़ा है पंक्षियों  ने  तेरा मानव  ? क्यूँ तूने इनका जीना कर  दिया  है मुश्किल ?   यह तो हर रोज  तुझे अपनी चहक से  उठाया करते  हैं, खुद  हर पल मस्त रहकर  तुझको मस्त रहने का  पाठ  पढ़ाया करते हैं ।   रंग  बिरंगी  पंक्षी करते हैं  तेरे  मन को लुभावन, खुद को  चिड़ियाघर  में  कैद  करके तुझे  हर्षाया करते हैं  ।   हे इंसान ! तु इतना प्रदूषण मत बढ़ा, कि कल पंक्षी भी बेघर हो जायें अपने घर से ।   - - - शुभम सिंह  ।  

love at best

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हमारी मेहनत उनसे मिलने की  नाकाम  होती रही।   और वह हमारी मोहब्बत को  मन का  फितूर  कहती  रही।।  फिर हमारी मोहब्बत और  मेहनत थक कर  बिकने आयी  बाजार में। पर उसकी  नीलामी  लेने  वाला  कोई  न  रहा इस  संसार में।। 

motivation

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जीवन को  कल्पना  की आधारशिला  पर  जीना बंद करो, यारों खुदा ने दो  हाथ  दिए,  दो पैर दिए कुछ करना तो  शुरू करो, चार दिन की जिंदगी,  जिसमें कल का कुछ पता नहीं, यारों कुछ आज  करना तो   शुरू करो । सांस कब खत्म  हो जाए इन साँसों  पर भरोसा बंद करो, नफरतों की  दीवारों  को खत्म  करना  शुरू करो, प्यार की बुंनियाद  पर  नयी  ईंट रखना तो  शुरू करो । तुम  नवयुग,  नवचेतना, नवनिर्माण  की शुरुआत  करो, चार दिन की जिंदगी, जिसमें कल का कुछ पता नहीं, यारों कुछ आज  करना तो   शुरू करो । वृक्षारोपण  कर हरियाली  की तुम  एक शुरुआत करो, धरती खिल जायेगी, अंबर खिल  जाएगा तुम पहल तो करो, हरा भरा जीवन जीने की तुम एक शुरुआत करो । चार दिन की जिंदगी, जिसमें कल का कुछ पता नहीं, यारों कुछ आज  करना तो   शुरू करो ।  

देश के लिए समर्पित कविता।

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हम उस देश के रहने वाले हैं, जहाँ भारत को माँ कहके पुकारा जाता है, जहाँ धरती को माँ का दर्जा दिया जाता है, अंबर को पिता बतलाया जाता है। हम उस देश के रहने वाले हैं, जहाँ भारत को माँ कहके पुकारा जाता है। अमरीका फ्रांस रूस ने क्या, अपने देश को माँ कहके पुकारा, माँ कहना उनको हमने सिखाया , मातृत्व का एहसास उनको हमने दिलाया। हम उस देश के रहने वाले हैं, जहाँ भारत को माँ कहके पुकारा जाता है। उगते हुए सूरज में परमात्मा हमने दिखाया, गीता का पाठ उनको हमने पढ़ाया, हम तो प्यार से रहने वाले लोग हैं, जहाँ चंदा को भी मामा कहके पुकारा जाता है। हम उस देश के रहने वाले हैं, जहाँ भारत को माँ कहके पुकारा जाता है। हमने इस दुनिया को प्रेम का पाठ पढ़ाया, की तुम भी जानो प्रेम की परिभाषा क्या होती है, हमने तो एक रंग से इस दुनिया और, राम , कृष्णा ,अल्लाह को प्रेम किया। तुम्हे नहीं बिश्वास  तो, आ जाओ घूम हमारी नगरी। चल जाएगा पता तुम्हे की, यहाँ का जन जन प्यारा है। यहाँ का जन जन, मिट्टी में है पला, छोटा बच्चा भी धरती को माँ कहता है। हम उस देश के रहने वाले हैं, जहाँ

नारी शक्ति ।

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जब तु छोटी गुड़िया थी, माँ की गोद में खेला करती थी, पापा ने तुझे चलना सिखाया, अब तु टुक टुक चला करती है  ।   गुड़िया से तु बड़ी बनी  और बनी बहना किसी की , रक्षाबंधन से प्यार का पाठ तुने पढ़ाया, फिर मर्यादाओं  ने  डाले डोरे  तुझ पर   ।   पापा ने फिर तेरा व्याह रचाया , तु चल गयी किसी की अंगना, फिर तुने अपना पत्नी धर्म निभाया   ।   बिना हमे खाना खिलाये, तुने खाना कभी नहीं खाया , मैं रात आऊं विलम्ब, तु तब तक जागा करती है   ।   इस समाज को तुने मातृत्व, वात्सल्य  का  एहसास दिलाया , फिर कालचक्र ने दिया तुझे एक गुड़िया , फिर खेल वही पुराना शुरु हुआ , गुड़िया से बहना  , बहना से माँ   ।   फिर तु बनी किसी की दादी  , परदादी , दादी बन कहानी सुनाया करती थी   ।   दुनिया में दे क़र सेवा, तु अलबिदा हो गयी  ।   नतमस्तक प्रणाम उस नारी जाती को , जो सब कुछ न्योछावर क़र गयी इस समाज को  ।    धन्य हो  देवी  ! धन्य हो   देवी ! धन्य हो  देवी  !      - - - शुभम सिंह