नारी शक्ति ।
जब तु छोटी गुड़िया थी,
माँ की गोद में खेला करती थी,
पापा ने तुझे चलना सिखाया,
अब तु टुक टुक चला करती है ।
माँ की गोद में खेला करती थी,
पापा ने तुझे चलना सिखाया,
अब तु टुक टुक चला करती है ।
गुड़िया से तु बड़ी बनी
और बनी बहना किसी की ,
रक्षाबंधन से प्यार का पाठ तुने पढ़ाया,
फिर मर्यादाओं ने डाले डोरे तुझ पर ।
रक्षाबंधन से प्यार का पाठ तुने पढ़ाया,
फिर मर्यादाओं ने डाले डोरे तुझ पर ।
पापा ने फिर तेरा व्याह रचाया ,
तु चल गयी किसी की अंगना,
फिर तुने अपना पत्नी धर्म निभाया ।
बिना हमे खाना खिलाये,
तुने खाना कभी नहीं खाया ,
मैं रात आऊं विलम्ब,
तु तब तक जागा करती है ।
इस समाज को तुने मातृत्व, वात्सल्य का एहसास दिलाया ,
फिर कालचक्र ने दिया तुझे एक गुड़िया ,
फिर खेल वही पुराना शुरु हुआ ,
गुड़िया से बहना , बहना से माँ ।
फिर कालचक्र ने दिया तुझे एक गुड़िया ,
फिर खेल वही पुराना शुरु हुआ ,
गुड़िया से बहना , बहना से माँ ।
फिर तु बनी किसी की दादी , परदादी ,
दादी बन कहानी सुनाया करती थी ।
दादी बन कहानी सुनाया करती थी ।
दुनिया में दे क़र सेवा,
तु अलबिदा हो गयी ।
नतमस्तक प्रणाम उस नारी जाती को ,
जो सब कुछ न्योछावर क़र गयी इस समाज को ।
धन्य हो देवी ! धन्य हो देवी ! धन्य हो देवी !
- - - शुभम सिंह
dhanyavad sir
ReplyDeleteबहुत उम्दा
ReplyDeleteDhanyavad Sir
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