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मोहब्बत ए दास्तान ।

हाँ मानता हूँ  मैं पागल था, पर यह पागलपन तो तेरे ही लिए था।  हाँ मानता हूँ मैं गवाँर था, पर सिर्फ तुमको ही चाहता था।  हाँ मानता हूँ मुझे समझ नहीं थी, पर मुझको तुम्हारे अलावा कुछ समझ नहीं आता था।  हाँ मानता हूँ मैं तुम जैसा  नहीं था,  पर तुमको मैं अपनी दुनिया मानता था।     हाँ मानता हूँ मैं तुम्हारे लायक नहीं था,  पर तुम तो हमे अपने लायक बना सकती थी।     हाँ मानता हूँ मुझको अंग्रेजी नहीं  आती थी, पर तुमको हिन्दी   तो आती थी।  कुछ युहीं कहानी चलती रहती थी, तुम हमको ठुकराती ही रहती थी, और हम तुम पर शहादत देते ही रहते थे ।   ।                                                              . . .   शुभम सिंह