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Showing posts from December, 2018

निगाहों निगाहों में ।

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निगाहों निगाहों  में बातें  होने  लगी,   धड़कनें धड़क धड़क  धड़कने  लगीं,   कुछ यूँ ही इश्क़ की  बयार  बहने  लगी,   कि हम उनमें और वह मुझमें  महकने  लगीं।   ।                                                                                                             . . .   शुभम सिंह                                                            

मेरे प्यार की पहली निशानी हो तुम।

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मेरे प्यार की पहली निशानी हो तुम ।     मेरे जज्बातों की पहली कहानी हो तुम ।।     मेरे  आँखों की पहली बारिश हो तुम ।     मेरे सपनों की पहली सिफारिश हो तुम ।।     मेरे उलझनों की पहली सुलझन हो तुम ।     मेरे धड़कनों की पहली धड़कन हो तुम ।।   मेरे मुस्कराहट की पहली आगाज़ हो तुम ।     मेरे दिल की पहली आवाज़ हो तुम ।।     मेरे काव्य की पहली मुक्तक हो तुम ।   मेरे यादों की पहली पुस्तक हो तुम ।।       मेरे प्यार की पहली झलक हो तुम ।     मेरे पलकों की पहली पलक हो तुम ।।     मेरे दिल की पहली विधायक हो तुम ।     मेरे हर निर्णय की पहली निर्णायक हो तुम ।।                                                                   . . . शुभम सिंह     

मेरी रजाई प्यारी रजाई ।

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मेरी रजाई प्यारी रजाई ।   जब देखो सुलाती रहती रजाई ।।   लिपट लिपट कर ठण्ड भगाती रजाई ।   बाहर न जाने को कहती रजाई ।।   मेरी रजाई प्यारी रजाई ।   जब देखो सुलाती रहती रजाई ।।   इसारे दे दे कर बुलाती रजाई ।   न जाऊं फिर इतराती रजाई ।।   मेरी रजाई प्यारी रजाई ।   जब देखो सुलाती रहती रजाई ।।     मेरे संग सोती रहती रजाई ।     जग जाऊं, बाबू बोल फिर सुलाती रजाई ।।   मेरी रजाई प्यारी रजाई ।     जब देखो सुलाती रहती रजाई ।।     एकीकार कर सुलाती मेरी रजाई ।     अच्छी निदिया  लाती मेरी रजाई ।।   मेरी रजाई प्यारी रजाई ।     जब देखो सुलाती रहती रजाई ।।                                . . . शुभम सिंह

किसी के लिए खुद को भूल जाने की ।

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किसी के लिए खुद को  भूल  जाने  की,  किसी के लिए खुद को  गवाँ  देने  की,  किसी के लिए खुद को  मिटा  देने  की, यह चाहत थी हमारी सिर्फ  उनको  पाने  की । किसी के लिए सबसे  लड़  जाने  की,  किसी के लिए सबसे  झूठ  बोल  जाने  की, किसी के लिए कुछ  कर  जाने  की,  यह चाहत थी हमारी  सिर्फ  उनको  पाने  की । किसी के लिए अकेले में बैठ कर  दुआ  करने  की,  किसी के लिए अकेले में बैठ कर  फोटो  चूमने  की,  किसी के लिए अकेले में बैठ कर  नाम  लिखने  की,  यह चाहत थी हमारी सिर्फ  उनको  पाने  की । किसी के लिए रजाई में  छुप  के  रोने  की,  किसी के लिए यादों में  खो  जाने  की,  किसी के लिए इस नादान  दिल की  धकड़ने  की,  यह चाहत थी हमारी सिर्फ  उनको  पाने  की ।  किसी के लिए बस खुद में खो  जाने  की, किसी के लिए बस तड़पते  ही  रह  जाने  की,  किसी के लिए बस रोते ही  रह  जाने  की,  यह चाहत थी हमारी सिर्फ  उनको  पाने  की  ।।                                                   . . .  शुभम  सिंह  

लड़ते हो तुम लड़ाते हो तुम ।

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लड़ते हो तुम लड़ाते हो तुम । पर मंदिर ना बनाते हो तुम ।।  मजहब के नाम पर सरकार चलाते हो तुम । हिन्दू को मुस्लिम से, मुस्लिम को हिन्दू से लड़ाते हो तुम ।।  खुद को महलों में रखते हो  तुम ।  पर रामलला को तिरपाल में रखते  हो तुम ।।  लड़ते हो तुम लड़ाते हो तुम । पर मंदिर ना बनाते हो तुम ।।   राम के नाम का तिलक लगाते हो तुम । पर कर्ज तिलक का अदा न कर पाते हो तुम ।।  बेटा, भाई राम जैसा मांगते हो तुम ।  पर मंदिर ना बनाते हो तुम ।। लड़ते हो तुम लड़ाते हो तुम । पर मंदिर ना बनाते हो तुम ।।   रामराज चाहते हो तुम ।  पर राम का मंदिर  ना बनाते हो तुम ।।  हिन्दू होकर भी कितने अजीब हो तुम ।  राम के खिलाफ  वकालत करते  हो तुम ।। लड़ते हो तुम लड़ाते हो तुम । पर मंदिर ना बनाते हो तुम ।।                          . . .  शुभम सिंह