क्या करूँ रब, वो याद आती ही है इतनी, की याद को भी रोक नहीं पाता हूँ । वह मुझमे ऐसे उतर जाती है, की मै खुद को भूल जाता हूँ, मुझको बेबस कर छोड़ जाती है। जब खुद को जागा हुआ पाता हूँ, तब मेरे सिवा कोई और दिखाई नहीं देता। क्या करूँ रब, वो याद आती ही है इतनी, की याद को भी रोक नहीं पाता हूँ। दिखाई देता है तो बेबसी का एक आलम, दिखाई देता है तो आंसुओं की एक कतार, जो आँखों से बह कर निकलते रहते है। दिखाई देता है तो चेहरे पर एक मीठी मुस्कान, फिर तकिया सीने से लगाकर सो जाता हूँ। कितना ताकतवर है रे तू मोहब्बत, की आंसूं को भी मीठी मुस्कान के साथ बाहर निकाल देता है। क्या करूँ रब, वो याद आती ही है इतनी, की याद को भी रोक नहीं पाता हूँ।