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Showing posts from April, 2018

शायरी दिल से ।

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मैं तो मोहब्बत का बहता हुआ दरिया हूँ,  तुम आती तो तुम्हे भी बहा ले जाता,  पर तुमको तो मोहब्बत का   म   भी  नहीं आता,  वरना कसम खुदा हर जुबाँ पर तेरा नाम अमर कर जाता ।  

हमने एक सपना पाल रखा था ।

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हमने एक सपना पाल रखा था, इस अजनबी दुनिया में दिल उनको दे रखा था, पर जब आँख खुली तब पता चला, मैं तो एक सपना देख रहा था ।     सपने में खुद को बेतहासा खो रखा था, माँ बाप को भी एक पल को भूल रखा था, पर जब आँख खुली तब पता चला, मैं तो एक सपना देख रहा था।     खुद को हमेशा हकीकत से दूर रखा था, क्योंकि दिल हमने जो  उनको दे रखा था, पर जब आँख खुली तब पता चला, मैं तो एक सपना देख रहा था ।  सपने में खुद को उनके यहाँ गिरवी रखा था, खुदा का मस्त परिंदा हूँ यह भी भूल रखा था, गलतियां पर गलतियां मैं कर रखा था, बस सपने में खुद को भूल रखा था ।  उठ जा, जाग जा हे मेरे आज के युवा, सपने को छोड़, खुदा को कर याद मेरे युवा, खुदा ने बड़ा खुबसूरत तेरा इंतज़ाम कर रखा है, तभी तो खुदा ने उस बेवफा को एक सपना बना रखा है ।                                                                               . . .  शुभम  सिंह  

some beautiful lines in love

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  1) मोहब्बत के हम बहुत बड़े रहीसदार हैं ।  पर तुम जैसों के लिये हम  बिकाऊ   नहीं  हैं । ।   2) तुम नहीं आओगी तब भी संभल जाऊँगा ।  तुम्हारी जुल्फ नहीं हूँ जो पल भर में बिखर जाऊँगा ।   ।      3) निलामी मेरी मोहब्बत की तुम क्या चुकाओगी ।  चुका भी लोगी तो कई जनम दिवालिया हो जाओगी । ।    

some heart touching lines

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1)  तुम्हारी याद आज भी बहुत आती है ।  पर तुम्हे अपना कहने को अब जी नहीं चाहता ।   ।   २)  जिगर तो बहुत है, कहो तो तुमको आज उठा लूँ ।  पर हम उनको उठाते ही नहीं, जो मोहब्बत के हकदार नहीं होते ।   ।   ३)  मुझे तुम्हारी बेरुखी भी बहुत पसंद आयी  ।  क्योंकि वह भी तुम जैसी कमबख्त ही निकली  ।   ।  

कुछ बातें जो बस बातें रह गयीं ।

1) तुम्हारी - हमारी कहानी, बस कुछ इतनी ही रह गयी।  तुम सिमट कर रह गयी, और हम बिखर कर रह गये।। 2)        तुम्हारा हाथ पकड़कर,  बहुत दुर जाना चाहते थे। पर कम्भक्त हम गाजियाबाद आ गये, और तुम बनारस चले गये।। 3)      इस दुनिया में शराब भी देखा, शबाब भी देखा।       पर तुम जैसा यार कोइ  नवाब नहीं देखा।।

मैं खुदा का निर्मित काया हूँ ।

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मैं खुदा का निर्मित काया हूँ, विचरण करने इस जग को आया हूँ। मत बाँध मेरी दुनिया , रीति रिवाज़ में, मत लिपटा मुझे संस्कारों की चादर में।   मत उलझा मुझे,  जातिवाद की आँधी में, मत रोक मुझे, आरक्षण की चौखट में।  मत  बाँट  मुझे, विरासत की थाली में,  मत  बाँट  मुझे, अपना पराया की दुर्गन्ध में । प्यार का स्वरुप लेकर आया हूँ, प्यार ही बाँटने इस जग को आया हूँ । मैं खुदा का निर्मित काया हूँ, विचरण करने इस जग को आया हूँ।  तु  मत कर   चिंता मानव  मेरी, खुदा से तजुर्बा लेकर आया हूँ।   मैं खुदा का निर्मित काया हूँ, विचरण करने इस जग को आया हूँ।                            . . . ( शुभम सिंह )