किसी को नजरों में बसाते हो, और किसी को नजरों से उतारते हो, कहते हो हम कुछ करते नहीं । किसी को रोटी देते हो, और किसी की रोटी छीनते हो, कहते हो हम कुछ करते नहीं । किसी का घर बसाते हो, और किसी का घर उजाड़ते हो, कहते हो हम कुछ करते नहीं । किसी को खूब इज्जत देते हो , और किसी की इज्जत लुटते हो, कहते हो हम कुछ करते नहीं । किसी के लिए आंसूं बहाते हो, और किसी को आंसूं बहाने देते हो, कहते हो हम कुछ करते नहीं । किसी की बहन के लिए परायी नज़र, और खुद की बहन के लिए दूसरी नज़र, कहते हो हम कुछ करते नहीं । हे मानव हो जाओ सावधान कर के सब कुछ भी कहते हो हम कुछ करते नहीं । । . . . . . . ( शुभम सिंह )