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Showing posts from March, 2018

मोहब्बत होती रही बदनाम ।

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मोहब्बत होती रही बदनाम, हम उसका हिस्सा बनते रहे। क्युँ हम उन्हें अपना दिल देते रहे, जो हमें कभी समझते ही नहीं रहे।   अब भी तुम सुधरे नहीं, उनको याद करते रहे, जो तुम्हें महज एक खिलौना समझते रहे।   मोहब्बत होती रही बदनाम, हम उसका हिस्सा बनते रहे।   करनी है तो उनसे करो मोहब्बत, जो हर घड़ी तुमको याद करते रहे।   पर तुम अपनी चाहत के पीछे उन्हें ठुकराते रहे,  तुम कुछ नहीं बस  एक तमाशा देखते रहे।   और मोहब्बत होती रही बदनाम, हम उसका हिस्सा बनते रहे ।   कर लो उनसे दिल खोल कर मोहब्बत, जो हर पल तुमसे बात करने को बेताब होते रहे,  फिर न बदनाम होगी मोहब्बत  और न ही तुम ।                                           . . .  ( शुभम  सिंह )

दिल के आरमा ।

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मौत आयेगी, आयेगी वह कभी एक दिन, पर तुम न आओगी कभी एक दिन, तुमसे कितनी अच्छी  है  वह मौत, बिन बुलाये वह आयेगी  एक दिन ।     मोहब्बत में हम तरसते हैं तुमसे मिलने को एक दिन,  पर मौत तरसती है हमसे मिलने को एक दिन।   तुम आ भी गयी तो छोड़  जाओगी एक दिन,  पर मौत आ गयी तो  छोड़ेगी नहीं ले जायेगी एक दिन ।   कम्भक्त मौत से ही मोहब्बत कर लेते एक दिन, वह रुलाती तो नहीं,  आंसुओं में कविता लिखवाती तो नहीं,  हँस हँस कर आती और हम हँस हँस कर चले जाते एक दिन ।   ।                                                   ...........( शुभम सिंह )

चलता चलता थक सा जाता हूँ ।

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चलता चलता थक सा जाता हूँ,  साँसों की उलझन में  उलझ  सा जाता हूँ। हर रोज है नयी  मंजिल  को पाना,  हर रोज है सूरज की  किरणों  से उठना,  हर रोज है शाम की  गोद  में  छिपना, चलता चलता थक सा जाता हूँ, साँसों की उलझन में  उलझ सा  जाता हूँ। कोइ अपना ही कभी  रूठ  जाता  है,  मैं अपनों से  कभी  रूठ  जाता हूँ, चलता चलता थक सा जाता हूँ, साँसों की उलझन में  उलझ सा  जाता हूँ । साँसों की कड़ियाँ तो  साँसें जोड़  जाती हैं, पर मेरी कड़ियाँ  कोइ न जोड़  जाता है, कोइ आता है दो दिन, कोइ तीन दिन  आता है, पर चौथे दिन सब छोड़  चले  जाते हैं, चलता चलता थक सा जाता हूँ,  साँसों की उलझन में  उलझ सा  जाता हूँ ।।                       . . . (शुभम सिंह )

मोहब्बत की दास्तान ।

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     मजा  नजारों  का हो तो मंजर कल बदल जाता है,  नशा जाम का हो तो कल ही  उतर जाता है,  पर नशा किसी की मोहब्बत की रवानी का हो,  फिर उतरता नहीं पूरा इंसान ही मोहब्बत  बन  जाता है ।  

कुछ बातें दिल की ।

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क्यूं कहते हो उनसे वह तुम्हारी हों, क्यूं कहते हो उनसे वह तुम्हारा ख्वाब हों, क्यूं कहते हो उनसे वह तुम्हारी जिंदगी हों,  क्यूं कहते हो उनसे वह तुमसे प्यार करें, क्यूं कहते हो उनसे वह तुमको याद करें, क्यूं कहते हो उनसे वह तुमको समय दें, यारों यह सच लगे तो उनसे इज़हार जरूर करना,  मना कर दें तो उनसे जिद पर न अड़ना, क्योंकि सौदा तो बाजार में होता है,  इश्क़ में तो सिर्फ  बेइंतहां इश्क़ होता है यारों ।                 .................. ( शुभम सिंह )