मोहब्बत होती रही बदनाम ।
मोहब्बत होती रही बदनाम, हम उसका हिस्सा बनते रहे। क्युँ हम उन्हें अपना दिल देते रहे, जो हमें कभी समझते ही नहीं रहे। अब भी तुम सुधरे नहीं, उनको याद करते रहे, जो तुम्हें महज एक खिलौना समझते रहे। मोहब्बत होती रही बदनाम, हम उसका हिस्सा बनते रहे। करनी है तो उनसे करो मोहब्बत, जो हर घड़ी तुमको याद करते रहे। पर तुम अपनी चाहत के पीछे उन्हें ठुकराते रहे, तुम कुछ नहीं बस एक तमाशा देखते रहे। और मोहब्बत होती रही बदनाम, हम उसका हिस्सा बनते रहे । कर लो उनसे दिल खोल कर मोहब्बत, जो हर पल तुमसे बात करने को बेताब होते रहे, फिर न बदनाम होगी मोहब्बत और न ही तुम । . . . ( शुभम सिंह )