लड़ते हो तुम लड़ाते हो तुम ।

लड़ते हो तुम लड़ाते हो तुम

पर मंदिर ना बनाते हो तुम।। 


मजहब के नाम पर सरकार चलाते हो तुम

हिन्दू को मुस्लिम से, मुस्लिम को हिन्दू से लड़ाते हो तुम।। 


खुद को महलों में रखते हो  तुम। 

पर रामलला को तिरपाल में रखते  हो तुम।। 


लड़ते हो तुम लड़ाते हो तुम

पर मंदिर ना बनाते हो तुम।।  


राम के नाम का तिलक लगाते हो तुम

पर कर्ज तिलक का अदा न कर पाते हो तुम।। 


बेटा, भाई राम जैसा मांगते हो तुम। 

पर मंदिर ना बनाते हो तुम।।


लड़ते हो तुम लड़ाते हो तुम

पर मंदिर ना बनाते हो तुम।।

 

रामराज चाहते हो तुम। 

पर राम का मंदिर  ना बनाते हो तुम।। 


हिन्दू होकर भी कितने अजीब हो तुम। 

राम के खिलाफ  वकालत करते  हो तुम।।


लड़ते हो तुम लड़ाते हो तुम

पर मंदिर ना बनाते हो तुम।।  


                       . . .  शुभम सिंह 

 


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