pollution at extreme level

हे इंसान ! तु इतना प्रदूषण मत बढ़ा,
कि कल पंक्षी भी  बेघर  हो जायें अपने घर से 

तु तो रह लेगा अपनी  इन चार  दिवारी  में,
पर छिन जायेगा पंक्षी का  बसेरा  अपने बसेरे से 

हे इंसान ! तु दुनिया घूम  लेगा अपनी  बंद  गाड़ी से,
पर पंक्षी का विचरण ना  हो पायेगा  इस  खुले  गगन से 

हे इंसान ! तु इतना प्रदूषण  मत बढ़ा,
कि कल पंक्षी भी  बेघर  हो जायें अपने घर से 

क्या बिगाड़ा है पंक्षियों  ने  तेरा मानव  ?
क्यूँ तूने इनका जीना कर  दिया  है मुश्किल ? 

यह तो हर रोज  तुझे अपनी चहक से  उठाया करते  हैं,
खुद  हर पल मस्त रहकर  तुझको मस्त रहने का  पाठ  पढ़ाया करते हैं 

रंग  बिरंगी  पंक्षी करते हैं  तेरे  मन को लुभावन,
खुद को  चिड़ियाघर  में  कैद  करके तुझे  हर्षाया करते हैं  

हे इंसान ! तु इतना प्रदूषण मत बढ़ा,
कि कल पंक्षी भी बेघर हो जायें अपने घर से 

- - - शुभम सिंह  



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