छा गयी है तू मुझमे।

छा गयी है तू मुझमे, 

महक गयी है तू मुझमे, 

चांदनी बन गयी है तू मुझमे, 

बस इंतज़ार है समा जा तू मुझमे। 


मुस्कराहट बन गयी है तू मुझमे, 

रिमझिम सावन बन गयी है तू मुझमे, 

एक गीत सी बन गयी है तू मुझमे, 

बस एक आदत सी बन गयी है तू मुझमे। 


सागर की गहराई जैसे उतर आयी है तू मुझमे, 

बहता दरिया सा ख्वाब बन आयी है तू मुझमे, 

ब्रह्माण्ड जैसा बिस्तार बन आयी है तू मुझमे, 

समुद्र मंथन का अमृतमयी कलश बन आयी है तू मुझमे। 


प्रेम का बिगुल बजा आयी है तू मुझमे, 

गुलाब के फूल जैसे खिल आयी है तू मुझमे, 

इस कदर उतर आयी है तू मुझमे, 

जैसे खुदा ही उतर आया हो मुझमे। 

                          . . . शुभम सिंह 

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