छोटू का संघर्ष।

उम्र  ना थी  कुछ  भी  उसकी, 

फिर भी  वह काम   किये जा रहा था, 

वह खुद पर  तरस  खा  रहा था,

पर जमाना  उससे काम  लिए जा  रहा था।

 

खेलने की  उम्र में  जिम्मेदारियाँ  निभा  रहा था, 

बचपन की  उम्र में  दुकान पे  छोटू कहला  रहा था,

उम्र ना  थी कुछ  भी  उसकी,

फिर भी  वह काम  किये जा  रहा था।


हर  कोई  उसे छोटू  बुला रहा था,

सबकी वह  बस सुने  जा रहा था,

पर उसकी  वेदना कोई  दूर नहीं  कर  रहा था, 

वह सिर्फ  मुस्करा के  काम किये   जा रहा था।


उम्र ना  थी कुछ  भी  उसकी। 

फिर भी  वह काम  किये जा  रहा था।।


अपने परिवार  का बोझ  उठा  रहा था, 

अमीरी को  आईना  दिखा  रहा था, 

गरीबी में  वह अपनी  अमीरी  दिखा रहा था, 

अपने परिवार  का खेवईया  कहला   रहा था।


 उम्र ना  थी कुछ  भी  उसकी। 

फिर भी  वह काम   किये जा  रहा था।।


सिसकियाँ  उसकी कौन  सुन  रहा था,

आंसू  उसके  कौन  पोछ  रहा था, 

प्यार  उससे  कौन कर  रहा था, 

बस खुद  के काम के  वास्ते हर  कोई  छोटू  कह  रहा था ।


उम्र  ना  थी  कुछ  भी  उसकी। 

फिर भी  वह  काम  किये  जा  रहा  था।।

                      . . . शुभम सिंह 

 

 

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