child is child

गंगा के छोर पर कुछ बच्चे हाथ पसारे खड़े थे, 

ट्रैन ऊपर से अहिस्ता अहिस्ता निकले जा रही थी, 

कोई आस्था के नाम पे  सिक्का  फेंक  रहा था,

कोई बस बैठे यह सब  देखे ही  जा रहा था, 

कोई उन बच्चों को अपना बच्चा जैसा  नहीं  समझ रहा था, 

गरीबी उन बच्चों से कही न  जा  रही थी, 

और लोगों की अमीरी  हमसे देखे नहीं  जा रही थी, 

मुझे सिर्फ खुदा के नाम पे  बस  इक आस्था  दिख रही थी,

और इस आस्था पर बच्चों का भरता पेट  दिख रहा था,  

शुक्र है खुदा तू है तो तेरी  हर एक  मूरत  सलामत है, 

वरना इस दुनिया में  हर मूरत का  तिरस्कार  ही  तिरस्कार  है।।

                                                                    . . .  शुभम सिंह 

 


Comments

  1. यही दुनिया की सच्चाई है भाई,जो अपने बता दिया

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