मैं खुदा का निर्मित काया हूँ ।

मैं खुदा का निर्मित काया हूँ,

विचरण करने इस जग को आया हूँ।


मत बाँध मेरी दुनिया , रीति रिवाज़ में,

मत लिपटा मुझे संस्कारों की चादर में।

 

मत उलझा मुझे,  जातिवाद की आँधी में,

मत रोक मुझे, आरक्षण की चौखट में। 


मत  बाँट  मुझे, विरासत की थाली में, 

मत  बाँट  मुझे, अपना पराया की दुर्गन्ध में ।


प्यार का स्वरुप लेकर आया हूँ,

प्यार ही बाँटने इस जग को आया हूँ ।


मैं खुदा का निर्मित काया हूँ,

विचरण करने इस जग को आया हूँ।


 तु  मत कर   चिंता मानव  मेरी,

खुदा से तजुर्बा लेकर आया हूँ।

 

मैं खुदा का निर्मित काया हूँ,

विचरण करने इस जग को आया हूँ।

                           . . . ( शुभम सिंह )  

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