करवा चौथ।
आज फिर करवा चौथ आया। फिर दिल में एक उभार लाया।। मेरी वह चाँदनी नहीं बन पायी। मैं उसका चाँद नहीं बन पाया।। आज फिर करवा चौथ आया। फिर दिल में एक उभार लाया।। उसका मुखड़ा इन आँखों में उतर आया। यह देख चाँद बहुत इतराया।। आज फिर करवा चौथ आया। फिर दिल में एक उभार लाया।। यादें फिर उसकी याद आयीं। जुल्फें लहराते वह नज़र आयी।। सिसकियाँ सिसक कर आयीं। बिन मौसम फिर बारिश आयी।। फिर वह कानपुर की गलियां याद आयीं। बनारस की गर्मियाँ भी बहुत भायीं।। कुछ पल का सपना हकीकत नज़र आया। यह देखने चाँद भी जमीं पर उतर आया।। आज फिर करवा चौथ आया। फिर दिल में एक उभार लाया।। . . . शुभम सिंह